Saturday, 4 May 2013

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Mantras

"Mantras" derived from the Sanskrit 'man', meaning 'to think'. Mantra literally means 'instrument of thought'.  Mantras are hymns, which are believed to benefit that chants them. Vedic mantras are said to have been divinely 'heard' (shruti) by ancient sages. These hymns are mostly invocations to the gods for protection against evil, or for assistance in performing one's duties or specific functions. The effectiveness of the mantras is said to depend on the mental discipline involved in its correct recitation, and the accompanying mode of breathing. According to the Agni Purana, if a mantra is recited quietly or in the mind, it is very effective. We here describe some of the most commonly used mantras & shlokas in our daily life.

हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।।



|| प्राणायाम मंत्र~PRANAYAMA MANTRA ||

     ॐ भूः । ॐ भूवः । ॐ स्वः । ॐ महः । ॐ जनः ॐ तपः । ओम् सत्यं ।

    ॐ भूः । ॐ भूवः । ॐ स्वः । ॐ महः । ॐ जनः ॐ तपः । ओम् सत्यं ।


|| सिद्धि प्राप्ति हेतु काली के कुल्लुकादि मन्त्र ||
इष्ट सिद्धि हेतु इष्टदेवता के ‘कुल्लुकादि मंत्रों’ का जप अत्यन्त आवश्यक हैं ।
अज्ञात्वा कुल्लुकामेतां जपते योऽधमः प्रिये ।
पञ्चत्वमाशु लभते सिद्धिहानिश्च जायते ।।

दश महाविद्याओं के कुल्लिकादि अलग-अलग हैं । काली के कुल्लुकादि इस प्रकार हैं -
कुल्लुका मंत्र -
क्रीं, हूं, स्त्रीं, ह्रीं, फट् यह पञ्चाक्षरी मंत्र हैं । मूलमंत्र से षडङ्ग-न्यास करके शिर में १२ बार कुल्लुका मंत्र का जप करें ।
सेतुः-
“ॐ”
 इस मंत्र को १२ बार हृदय में जपें । ब्राह्मण एवं क्षत्रियों का सेतु मंत्र “ॐ” हैं । वैश्यों के लिये “फट्” तथा शूद्रों के लिये “ह्रीं” सेतु मंत्र हैं । इसका १२ बार हृदय में जप करें ।
महासेतुः-
“क्रीं”
 इस महासेतु मंत्र को कण्ठ-स्थान में १२ बार जप करें ।
निर्वाण जपः-
मणिपूर-चक्र (नाभि) में - ॐ अं पश्चात् मूलमंत्र के बाद ऐं अं आं इं ईं ऋं ॠं लृं ॡं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङ चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं ॐ का जप करें । पश्चात् “क्लीं” बीज को स्वाधिष्ठान चक्र में १२ बार जप करें । इसके बाद “ॐ ऐं ह्रीं शऽरीं क्रीं रां रीं रुं रैं रौं रं रः रमल वरयूं राकिनी मां रक्ष रक्ष मम सर्वधातून् रक्ष रक्ष सर्वसत्व वशंकरि देवि ! आगच्छागच्छ इमां पूजां गृह्ण गृह्ण ऐं घोरे देवि ! ह्रीं सः परम घोरे घोर स्वरुपे एहि एहि नमश्चामुण्डे डरलकसहै श्री दक्षिण-कालिके देवि वरदे विद्ये ! इस मन्त्र का शिर में द्वादश बार जप करें । इसके बाद ‘महाकुण्डलिनी’ का ध्यान कर इष्टमंत्र का जप करना चाहिए । मंत्र सिद्धि के लिये मंत्र के दश संस्कार भी आवश्यक हैं ।
जननं जीवनं पश्चात् ताडनं बोधनं तथा ।
अथाभिषेको विमलीकरणाप्यायनं पुनः ।
तर्पणं दीपनं गुप्तिर्दशैताः मंत्र संस्क्रियाः ।।


|| कार्य~सिद्धि कारक गोरक्षनाथ मंत्र ||


मन्त्रः-
“ॐ गों गोरक्षनाथ महासिद्धः, सर्व-व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ।। १।।
यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वातपित्त कफोद्भवाः ।। २।।
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वैताला, राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।।
नाऽकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दश्यते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों ।। ४।।
ॐ घण्टाकर्णो नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।।”

विधिः- यह मंत्र तैंतीस हजार या छत्तीस हजार जाप कर सिद्ध करें । इस मंत्र के प्रयोग के लिए इच्छुक उपासकों को पहले गुरु-पुष्य, रवि-पुष्य, अमृत-सिद्धि-योग, सर्वार्त-सिद्धि-योग या दिपावली की रात्रि से आरम्भ कर तैंतीस या छत्तीस हजार का अनुष्ठान करें । बाद में कार्य साधना के लिये प्रयोग में लाने से ही पूर्णफल की प्राप्ति होना सुलभ होता है ।
विभिन्न प्रयोगः- इस को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है । भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है । मोर-पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ-सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है ।
१॰ मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गुल की गोलियों से हवन किया जाये, तो भूत-प्रेत का भय मिट जाता है । राक्षस उपद्रव हो, तो ग्यारह हजार जप व गुग्गुल से हवन करें ।
२॰ अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरुआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार मंत्रित कर हाथ के बाँधने से चौरासी प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ।
३॰ इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करने से चोर, बैरी व सारे उपद्रव नाश हो जाते हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा उपासक पूर्णायु को प्राप्त होता है ।
४॰ आग लगने पर इक्कीस बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से आग शान्त होती है ।
५॰ मोर-पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है ।
६॰ कुंवारी कन्या के हाथ से कता सूत के सात तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप देकर गले या हाथ में बाँधने पर ज्वर, एकान्तरा, तिजारी आदि चले जाते हैं ।
७॰ सात बार जल अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।
८॰ पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है । यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बाँध दी जाए, तो प्राणि उस घंटी की नाद सुनता है तथा निरोग रहता है ।
९॰ गर्भ पीड़ा के समय जल अभिमंत्रित कर गर्भवती को पिलावे, तो पीड़ा दूर होकर बच्चा आराम से होता है, मंत्र से १०८ बार मंत्रित करे ।
१०॰ सर्प का उपद्रव मकान आदि में हो, तो पानी को १०८ बार मंत्रित कर मकानादि में छिड़कने से भय दूर होता है । सर्प काटने पर जल को ३१ बार मंत्रित कर पिलावे तो विष दूर हो ।

|| वशीकरण का मन्त्र ||

वशीकरण का मन्त्र
मन्त्रः-
“जन मन मंजु मुकुर मल हरनी ।
कियें तिलक गुन गन बस करनी ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
किसी ग्रहण काल के पूर्ण समय में इस मन्त्र के लगातार जप करते रहें और जब आवश्यकता हो तब गोरोचन को घिस करके इस मन्त्र से सात बार शक्तिकृत करके माथे में टीका लगा लें ।
स्त्री अपने पति को वशीभूत करने के लिये छुहारे की गुठली को घिसकर यह मन्त्र पढ़ते हुए प्रातःकाल के समय माथे में बिंदी लगा कर सोते हुए पति को हंसते हुए जगाये । इस मन्त्र के प्रयोग से वशीकरण होता है ।

|| सकल मनोरथ सिद्धि मन्त्र ||

मन्त्रः-
“भव भेषज रघुनाथ जसु,
सुनहिं जे नर अरु नारि ।

तिन्ह कर सकल मनोरथ,
सिद्ध करहिं त्रिसरारि ।।”

मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
कामना के अनुसार माला लेकर उससे इस मन्त्र के ५०० जप नित्य करते हुए ३१ दिन तक करें । जब आवश्यकता हो तब पान या इलायची को इस मन्त्र से शक्तिकृत करके उस व्यक्ति को खीलायें, जिससे कार्य करवाना हो ।
इस मन्त्र के प्रयोग से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं ।

|| श्री गुरु गोरखनाथ का शाबर मंत्र~GURU GORAKHNATH SHABAR MANTRA ||


श्री गुरु गोरखनाथ का शाबर मंत्र 

विधि - सात कुओ या किसी नदी से सात बार जल लाकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए रोगी को स्नान करवाए तो उसके ऊपर से सभी प्रकार का किया-कराया उतर जाता है. 

मंत्र 

ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा. 

|| गणेश गायत्री मन्त्रः ||
ॐ   तत्पुरुषाय   विद्महे
वक्रतुंडाय   धीमहि   ।
तन्नो   दंती   प्रचोदयात  ॥
|| GENESHA MANTRA ||


शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥



|| गुरु गायत्री मन्त्रः ||
ॐ   गुरुदेवाय   विद्महे
परब्रह्माय   धीमहि   ।
तन्नो   गुरुः   प्रचोदयात  ॥

|| लोक कल्याण कारक शाबर मन्त्र ||

लोक कल्याण-कारक शाबर मन्त्र

१॰ अरिष्ट-शान्ति अथवा अरिष्ट-नाशक मन्त्रः-
क॰ “ह्रीं हीं ह्रीं”
ख॰ “ह्रीं हों ह्रीं”
ग॰ “ॐ ह्रीं फ्रीं ख्रीं”
घ॰ “ॐ ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं”
विधिः-उक्त मन्त्रों में से किसी भी एक मन्त्र को सिद्ध करें । ४० दिन तक प्रतिदिन १ माला जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है । बाद में संकट के समय मन्त्र का जप करने से सभी संकट समाप्त हो जाते हैं ।

२॰ सर्व-शुभ-दायक मन्त्रः-
मन्त्र - ” ॐ ख्रीं छ्रीं ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं ।”
विधिः- उक्त मन्त्र का सदैव स्मरण करने से सभी प्रकार के अरिष्ट दूर होते हैं । अपने हाथ में रक्त पुष्प (कनेर या गुलाब) लेकर उक्त मन्त्र का १०८ बार जप कर अपनी इष्ट-देवी पर चढ़ाए अथवा अखण्ड भोज-पत्र पर उक्त मन्त्र को दाड़िम की कलम से चन्दन-केसर से लिखें और शुभ-योग में उसकी पञ्चोपचारों से पूजा करें ।

३॰ अशान्ति-निवारक-मन्त्रः-
मन्त्रः- “ॐ क्षौं क्षौं ।”
विधिः- उक्त मन्त्र के सतत जप से शान्ति मिलती है । कुटुम्ब का प्रमुख व्यक्ति करे, तो पूरे कुटुम्ब को शान्ति मिलती है ।

४॰ शान्ति, सुख-प्राप्ति-मन्त्रः-
मन्त्रः- “ॐ ह्रीं सः हीं ठं ठं ठं ।”
विधिः- शुभ योग में उक्त मन्त्र का १२५ माला जप करे । इससे मन्त्र-सिद्धि होगी । बाद में दूध से १०८ अहुतियाँ दें, तो शान्ति, सुख, बल-बुद्धि की प्राप्ति होती है ।

५॰ रोग-शान्ति-मन्त्रः-
मन्त्रः- “ॐ क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं फट् ।”
विधिः- उक्त मन्त्र का ५०० बार जप करने से रोग-निवारण होता है । प्रतिदिन जप करने से सु-स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है । कुटुम्ब में रोग की समस्या हो, तो कुटुम्ब का प्रधान व्यक्ति उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित जल को रोगी के रहने के स्थान में छिड़के । इससे रोग की शान्ति होगी । जब तक रोग की शान्ति न हो, तब तक प्रयोग करता रहे ।

६॰ सर्व-उपद्रव-शान्ति-मन्त्रः-
मन्त्रः- “ॐ घण्टा-कारिणी महा-वीरी सर्व-उपद्रव-नाशनं कुरु कुरु स्वाहा ।”
विधिः- पहले इष्ट-देवी को पूर्वाभिमुख होकर धूप-दीप-नैवेद्य अर्पित करें । फिर उक्त मन्त्र का ३५०० बार जप करें । बाद में पश्चिमाभिमुख होकर गुग्गुल से १००० आहुतियाँ दें । ऐसा तीन दिन तक करें । इससे कुटुम्ब में शान्ति होगी ।

७॰ ग्रह-बाधा-शान्ति मन्त्रः-
मन्त्रः- “ऐं ह्रीं क्लीं दह दह ।”
विधिः- सोम-प्रदोष से ७ दिन तक, माल-पुआ व कस्तूरी से उक्त मन्त्र से १०८ आहुतियाँ दें । इससे सभी प्रकार की ग्रह-बाधाएँ नष्ट होती हैं ।

८॰ देव-बाधा-शान्ति-मन्त्रः-
मन्त्रः- “ॐ सर्वेश्वराय हुम् ।”
विधिः- सोमवार से प्रारम्भ कर नौ दिन तक उक्त मन्त्र का ३ माला जप करें । बाद में घृत और काले-तिल से आहुति दें । इससे दैवी-बाधाएँ दूर होती हैं और सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है ।
|| अनुभूति करने का मन्त्र ||
अनुभूति करने का मन्त्र

मन्त्रः-
“मोरे हित हरि सम नहिं कोऊ ।
एहि अवसर सहाय सोइ होऊ ।।”


मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
प्रभु कृपा के लिए एकाग्रता आवश्यक है अतः तन-मन को प्रभु राम में जोड़ करके इस मन्त्र के लगातार जप करते रहें । जप काल में जैसी अनुभूति हो वैसा ही करके लाभ उठायें ।

जब कोई भी उपाय लाभान्वित न कर रहा हो और प्राण या मान संकट में हो तब इस मन्त्र का प्रयोग करते हैं ।
|| वशीकरण का अनूठा प्रयोग ||

वशीकरण का अनूठा प्रयोग

मन्त्रः-
“जति हनुमन्ता, जाय मरघट । पिण्ड का कोन है शोर, छत्तीमय बन पड़े । जेही दश मोहुँ, तेही दश मोहुँ । गुरु की शक्ति, मेरी भक्ति । फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ।”


विधिः- शनिवार के दिन हनुमान जी का विधि-वत् पूजन करें । ‘सुखडी’ का नैवेद्य चढ़ाएं । ‘सुखड़ी’ गेहूँ के आटे, गुड़ व घृत से बनती है । नैवेद्य अर्पित कर उक्त मन्त्र का १५०० ‘जप’ करें । ८ दिनों तक या शनिवार तक जप करें । इससे मन्त्र की सिद्धि होगी । फिर नित्य निश्चित संख्या में ‘जप’ करता रहे । इससे मन्त्र चैतन्य रहेगा ।
बाद में जब आवश्यकता हो, तो चौराहे की मिट्टी ७ चुटकी या ७ कंकड़ लाएं और घर में ही रखकर प्रत्येक के ऊपर २५०-२५० बार उक्त मन्त्र जप कर अभिमन्त्रित करें । फिर मिट्टी या कंकड़ी को ऐसे जलाशय में या कुएँ में या तालाब में डाले, जहाँ से पूरे गाँव को या मुहल्ले को जल वितरित होता हो । जल का पान करने वाले लोगों का वशीकरण होगा ।
इस प्रकार के प्रयोग छोटे गाँव के ऊपर करने से ही ठीक परिणाम मिलता है । इसके अतिरिक्त साधक-बन्धु अन्य परिवर्तन स्व-सूझ-बूझ से कर सकते हैं ।
|| भगवान शनि के प्रमुख मंत्र ||ढैया व साढ़ेसाती में लाभ : शनि स्त्रोत, शनि मंत्र, शनि वज्रपिंजर कवच तथा महाकाल शनि मृत्युंजय स्त्रोत का पाठ करने से जिन जातकों को शनि की साढ़ेसाती व ढैया चल रहा है, उन्हें मानसिक शांति, कवच की प्राप्ति तथा सुरक्षा के साथ भाग्य उन्नति का लाभ होता है। सामान्य जातक जिन्हें ढैया अथवा साढ़ेसाती नहीं है, वे शनि कृपा प्राप्ति के लिए अपंग आश्रम में भोजन तथा चिकित्सालय में रुग्णों को ब्रेड व बिस्किट बांट सकते हैं।

* महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप (नित्य 10 माला, 125 दिन) करें-

- ॐ त्र्यम्बकम्* यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*।

* शनि के निम्न मंत्र का 21 दिन में 23 हजार जप करें -
- ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।

* पौराणिक शनि मंत्र :
- ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्*।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्*।

* टोटका - शनिवार के दिन उड़द, तिल, तेल, गु़ड का लड्डू बना लें और जहां हल न चला हो वहां गाड़ दें।
|| शत्रु को मित्र बनाने का मन्त्र ||
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई ।
गोपद सिन्धु अनल सितलाई ।।”

मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
नवरात्रि के पवित्र समय पर इस मन्त्र को १००० बार प्रतिदिन जपें । जब आवश्यकता हो इस मन्त्र से शक्तिकृत करके गोरोचन का टीका लगा लें । किसी भी कार्य से शत्रु के समक्ष जायें, तो वह मित्रवत् बन जाता है ।

|| ब्रह्मास्त्र माला मंत्र ||

।। ब्रह्मास्त्र माला मंत्र ।।

ॐ नमो भगवति चामुण्डे नरकंकगृधोलूक परिवार सहिते श्मशानप्रिये नररूधिर मांस चरू भोजन प्रिये सिद्ध विद्याधर वृन्द वन्दित चरणे ब्रह्मेश विष्णु वरूण कुबेर भैरवी भैरवप्रिये इन्द्रक्रोध विनिर्गत शरीरे द्वादशादित्य चण्डप्रभे अस्थि मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रं दक्षिण दिशि आगच्छागच्छ मानय-मानय नुद-नुद अमुकं (अपने शत्रु का नाम लें) मारय-मारय, चूर्णय-चूर्णय, आवेशयावेशय त्रुट-त्रुट, त्रोटय-त्रोटय स्फुट-स्फुट स्फोटय-स्फोटय महाभूतान जृम्भय-जृम्भय ब्रह्मराक्षसान-उच्चाटयोच्चाटय भूत प्रेत पिशाचान् मूर्च्छय-मूर्च्छय मम शत्रून् उच्चाटयोच्चाटय शत्रून् चूर्णय-चूर्णय सत्यं कथय-कथय वृक्षेभ्यः सन्नाशय-सन्नाशय अर्कं स्तम्भय-स्तम्भय गरूड़ पक्षपातेन विषं निर्विषं कुरू-कुरू लीलांगालय वृक्षेभ्यः परिपातय-परिपातय शैलकाननमहीं मर्दय-मर्दय मुखं उत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय भूत भविष्यं तय्सर्वं कथय-कथय कृन्त-कृन्त दह-दह पच-पच मथ-मथ प्रमथ-प्रमथ घर्घर-घर्घर ग्रासय-ग्रासय विद्रावय – विद्रावय उच्चाटयोच्चाटय विष्णु चक्रेण वरूण पाशेन इन्द्रवज्रेण ज्वरं नाशय – नाशय प्रविदं स्फोटय-स्फोटय सर्व शत्रुन् मम वशं कुरू-कुरू पातालं पृत्यंतरिक्षं आकाशग्रहं आनयानय करालि विकरालि महाकालि रूद्रशक्ते पूर्व दिशं निरोधय-निरोधय पश्चिम दिशं स्तम्भय-स्तम्भय दक्षिण दिशं निधय-निधय उत्तर दिशं बन्धय-बन्धय ह्रां ह्रीं ॐ बंधय-बंधय ज्वालामालिनी स्तम्भिनी मोहिनी मुकुट विचित्र कुण्डल नागादि वासुकी कृतहार भूषणे मेखला चन्द्रार्कहास प्रभंजने विद्युत्स्फुरित सकाश साट्टहासे निलय-निलय हुं फट्-फट् विजृम्भित शरीरे सप्तद्वीपकृते ब्रह्माण्ड विस्तारित स्तनयुगले असिमुसल परशुतोमरक्षुरिपाशहलेषु वीरान शमय-शमय सहस्रबाहु परापरादि शक्ति विष्णु शरीरे शंकर हृदयेश्वरी बगलामुखी सर्व दुष्टान् विनाशय-विनाशय हुं फट् स्वाहा। ॐ ह्ल्रीं बगलामुखि ये केचनापकारिणः सन्ति तेषां वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय जिह्वां कीलय – कीलय बुद्धिं विनाशय-विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा । ॐ ह्रीं ह्रीं हिली-हिली अमुकस्य (शत्रु का नाम लें) वाचं मुखं पदं स्तम्भय शत्रुं जिह्वां कीलय शत्रुणां दृष्टि मुष्टि गति मति दंत तालु जिह्वां बंधय-बंधय मारय-मारय शोषय-शोषय हुं फट् स्वाहा।।

|| समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये मन्त्र ||

विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥
अर्थ :- देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परा वाणी हो।

|| महामृत्युंजय मंत्र ||

महामृत्युंजय मंत्र


ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम.
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्.

|| श्री गणेश मूल मंत्र ||

श्री गणेश मूल मंत्र


ॐ गं गणपतये नमः
ॐ श्री विघ्नेश्वराय  नमः